रथ यात�रा
उड़ीसा में समà¥�दà¥�र तट पर सà¥�थित पà¥�री के à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ हिंदà¥�ओं के पà¥�रधान देवता है। उन का आकरà¥�षण केवल निशà¥�चित à¤à¥Œà¤—ोलिक कà¥�षेतà¥�र, सà¥�थान, संसà¥�कृति और राषà¥�टà¥�रीय सà¥�तर तक ही सीमित नही है बलà¥�कि विदेशों में à¤à¥€ बडी संखà¥�या में शà¥�रधà¥�दालà¥� शà¥�रीजगनà¥�नाथ के दरà¥�शन के लिà¤� पà¥�री पहà¥�ंचते हैं। इसी लिà¤� उनà¥�हें जगनà¥�नाथ या बà¥�रहà¥�मांड का à¤à¤—वान कहते है। देश, धरà¥�म तथा धारà¥�मिक मानà¥�यताओं से परे दà¥�निया à¤à¤° के अनà¥�याईयों का परम à¤à¤•à¥�ति से सराबोर जनसमूह उस देव की à¤�क à¤�लक पाना चाहता है जो मिलन, à¤�कता और अखंडता की मूरà¥�ति है।
सम�प�रदाय
जगनà¥�नाथ संपà¥�रदाय कितना पà¥�राना है तथा यह कब उतà¥�पनà¥�न हà¥�आ था इस बारे में सà¥�पषà¥�ट तौर पर कà¥�छ नही कहा जा सकता। वैदिक साहितà¥�य और पौराणिक कथाओं में à¤à¤—वान जगनà¥�नथ या पà¥�रूषोतà¥�तम का विषà¥�णà¥� के अवतार के रूप में उनकी महिमा का गà¥�णगान किया गया है। अनà¥�य अनà¥�संधान सà¥�रोतों से इस बात के परà¥�यापà¥�त सबूत है कि यह संपà¥�रदाय वैदिक काल से à¤à¥€ पà¥�राना है। इन सà¥�रोतों के अनà¥�सार à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ शबर जनजातीय समà¥�दाय से संबधित है और वे लोग इनकी पूजा गोपनीय रूप से करते थे। बाद में उनको पà¥�री लाया गया। वे सारे बà¥�रहà¥�मांड के देव है तथा वे सबसे संबधित है। अनेक संपà¥�रदायों जैसे वैषà¥�णव, शैव, शाकà¥�त, गणपति, बौधà¥�द तथा जैन ने अपने धारà¥�मिक सिंधà¥�दातों में समानता पाई है। जगनà¥�नाथ जी के à¤à¤•à¥�तों में सालबेग à¤à¥€ है जो जनà¥�म से मà¥�सà¥�लिम था। à¤à¤—वान जगनà¥�नथ और उनके मंदिर ने अनेक संपà¥�रदायों तथा धारà¥�मिक समà¥�दायों के धरà¥�म गà¥�रूओं का पà¥�री आकरà¥�षित किया है। आदि शंकराचारà¥�य ने इसे गोवरà¥�धन पीठसà¥�थापित करने के लिà¤� चà¥�ना। उनà¥�होंने जगनà¥�नाथाषà¥�टक का à¤à¥€ संकलन किया। अनà¥�य धारà¥�मिक संत या धरà¥�म गà¥�रू जो यहां आये तथा à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ की पूजा की उनमें माधवाचारà¥�य, निमà¥�बारà¥�काचारà¥�य, सांयणाचारà¥�य, रामानà¥�ज, रामानंद, तà¥�लसीदास, नानक, कबीर, तथा चैतनà¥�य हैं और सà¥�थानीय संत जैसे जगनà¥�नाथ दास, बलराम दास, अचà¥�यà¥�तानंद, यशवंत, शिशà¥� अनंत और जयदेव à¤à¥€ यहां आये तथा à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ की पूजा की। पà¥�री में इन संतों दà¥�वारा मठया आशà¥�रम सà¥�थापित किये गये जो अà¤à¥€ à¤à¥€ मौजूद हैं तथा किसी न किसी रूप में जगनà¥�नाथ मंदिर से संबधित हैं।
कथा
पौराणिक कथाओं के अनà¥�सार राजा इंदà¥�रघà¥�मà¥�न à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आये थे तथा उनà¥�होंने ही मूल मंदिर का निरà¥�माण कराया था जो बाद में नषà¥�ट हो गया। इस मूल मंदिर का कब निरà¥�माण हà¥�आ और यह कब नषà¥�ट हो गया इस बारे में पकà¥�के तौर पर कà¥�छ à¤à¥€ सà¥�पषà¥�ट नही है। ययाति केशरी ने à¤à¥€ à¤�क मंदिर का निरà¥�माण कराया था। मौजूदा 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निरà¥�माण 12वीं शताबà¥�दी में चोलगंगदेव तथा अनंगà¤à¥€à¤®à¤¦à¥‡à¤µ ने कराया था। परंतà¥� जगनà¥�नाथ संपà¥�रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है। मौजूदा मंदिर में à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ की पूजा उनके à¤à¤¾à¤ˆ बलà¤à¤¦à¥�र तथा बहन सà¥�à¤à¤¦à¥�रा के साथ होती है। इन मूरà¥�तियों के चरण नहीं है। केवल à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ और बलà¤à¤¦à¥�र के हाथ है लेकिन उनमें कलाई तथा ऊंगलियां नहीं हैं। ये मूरà¥�तियां नीम की लकड़ी की बनी हà¥�ई है तथा इनà¥�हें पà¥�रतà¥�येक बारह वरà¥�ष में बदल दिया जाता है। इन मूरà¥�तियों के बारे में अनेक मानà¥�यताà¤�ं तथा लोककथाà¤�ं पà¥�रचलित है। यह मंदिर 20 फीट ऊंची दीवार के परकोटे के à¤à¥€à¤¤à¤° है जिसमें अनेक छोटे-छोटे मंदिर है। मà¥�खà¥�य मंदिर के अलावा à¤�क परंपरागतà¥� डयोढ़ी, पवितà¥�र देवसà¥�थान या गरà¥�à¤à¤—ृह, पà¥�रारà¥�थना करने का हॉल और सà¥�तंà¤à¥‹à¤‚ वाला à¤�क नृतà¥�य हॉल है। सदियों से पà¥�री को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे, नीलगिरि, नीलादà¥�री, नीलाचल, पà¥�रूषोतà¥�तम, शंखकà¥�षेतà¥�र, शà¥�रीकà¥�षेतà¥�र, जगनà¥�नाथ धाम और जगनà¥�नाथ पà¥�री। यहां पर बारह महतà¥�वपूरà¥�ण तà¥�यौहार मनाये जाते हैं। लेकिन इनमें सबसे महतà¥�वपूरà¥�ण तà¥�यौहार जिसने अंतरà¥�राषà¥�टà¥�रीय खà¥�याति पà¥�रापà¥�त की है वह रथयातà¥�रा ही है।
यात�रा
यह यातà¥�रा आषाढ़ महीने (जून-जà¥�लाई) मे आता है। à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ अपने à¤à¤¾à¤ˆ बलà¤à¤¦à¥�र तथा बहन सà¥�à¤à¤¦à¥�रा के साथ गà¥�डिचा मंदिर पर वारà¥�षिक à¤à¥�रमण पर जाते है जो उनके à¤�क सगे संबधी का घर है। ये तीनों देव वहां के लिà¤� अपनी यातà¥�रा सजे संवरे रथों पर सवार होकर करते हैं, इसीलिà¤� इसे रथ यातà¥�रा अथवा रथ महोतà¥�सव कहते हैं। इन तीनों देवों के रथ अलग-अलग होते हैं जिनà¥�हें उनके à¤à¤•à¥�त गà¥�ंडिचा मंदिर तक खींचते हैं। नंदीघोष नामक रथ 45.6 फीट ऊंचा है जिसमे à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ सवार होते हैं। तालधà¥�वज नामक रथ 45 फीट ऊंचा है जिसमे à¤à¤—वान बलà¤à¤¦à¥�र सवार होते हैं। दरà¥�पदलन नामक रथ 44.6 फीट ऊंचा है जिसमे देवी सà¥�à¤à¤¦à¥�रा सवार होती है। ये रथ बड़े ही विशाल होते हैं तथा इनà¥�हें रथ में सवार देव के सांकेतिक रंगों के अनà¥�सार ही सजाया जाता है। देवों को लाने के लिà¤� इन रथों को मंदिर के बाहर à¤�क परंपरा के अनà¥�सार ही खड़ा किया जाता जिसे पहंडी बीजे कहते हैं। गजपति सà¥�वरà¥�णिम à¤�ाडà¥� से सफाई करता है। केवल तà¤à¥€ रथों की खींचा जाता है। ये तीनों देव गà¥�ंडिचा मंदिर में सात दिनों तक विशà¥�राम करते हैं और फिर इसी तरह से उनà¥�हें वापस उनके मà¥�खà¥�य मंदिर में लाया जाता है। इस पà¥�रकार नौ दिनों तक चलने वाला यह रथ महोतà¥�सव समापà¥�त होता है। यह अनोंखा रथ महोतà¥�सव कब से शà¥�रू हà¥�आ किसी को पता नहीं है। जबकि रथ शबà¥�द ऋगà¥�वेद तथा अथरà¥�ववेद में à¤à¥€ आया है तथा à¤à¤—वान सूरà¥�य का रथ पर सवार होने को à¤à¥€ पौराणिक कथाओं में वरà¥�णित है। अà¤à¥€ à¤à¥€ कà¥�छ अनà¥�संधानकरà¥�ता इस रथ महोतà¥�सव को बौधà¥�द परंपरा से जोड़ते हैं।
महत�व
इस रथ महोतà¥�सव का सबसे जà¥�यादा महतà¥�व यह है कि इससे à¤à¤•à¥�तजनों को अपने पà¥�रिय आराधà¥�य देव की à¤�क à¤�लक मिल जाती है। जैसे à¤à¤—वान आम जनता से मिलने के लिà¤� अपने मंदिर से बाहर आये हो। यह रथ महोतà¥�सव बेहद लोकपà¥�रिय हो गया है और इसने इतना महतà¥�व पà¥�रापà¥�त कर लिया है कि अब यह केवल पà¥�री तक ही सीमित नहीं है। इसी पà¥�रकार के रथ महोतà¥�सव देश के अलग-अलग सà¥�थानों पर तथा विदेश में à¤à¥€ मनाये जाते हैं। à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ की पूजा उड़ीसा के लोगों की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं से इस पà¥�रकार गहराई से जà¥�ड़ गई है कि हर कोई वà¥�यकà¥�ति लगà¤à¤— पà¥�रतà¥�येक गांव तथा शहर में जगह-जगह जगनà¥�नाथ मंदिर रथ महोतà¥�सव को देख सकता है। à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ तथा उनका रथ महोतà¥�सव मिलन, à¤�कता तथा अखंडता का पà¥�रतीक है। यदà¥�यपि वे पà¥�री में विराजमान हैं फिर à¤à¥€ वे इस संपूरà¥�ण बà¥�रहà¥�मांड के à¤à¤—वान हैं तथा उनका पà¥�रà¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ चिताकरà¥�षण सारà¥�वà¤à¥Œà¤®à¤¿à¤• है। सà¤à¥€ लोग उनसे संबंधित हैं à¤�वं वे सà¤à¥€ से संबंधित हैं। उनके विशाल नेतà¥�रों के सामनें सà¤à¥€ बराबर हैं।
रथ यातà¥�रा और नव कालेबाड़ा पà¥�री के पà¥�रसिदà¥�ध परà¥�व हैं। ये दोनों परà¥�व à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ की मà¥�खà¥�य मूरà¥�ति से संबदà¥�ध हैं। नव कालेबाड़ा परà¥�व बहà¥�त ही महतà¥�वपूरà¥�ण धारà¥�मिक अनà¥�षà¥�ठान है, तीनों मूरà¥�तियों- à¤à¤—वान जगनà¥�नाथ, बलà¤à¤¦à¥�र और सà¥�à¤à¤¦à¥�रा का बाहरी रूप बदला जाता है। इन नà¤� रूपों को विशेष रूप से सà¥�गंधित चंदन-नीम के पेड़ों से निरà¥�धारित कड़ी धारà¥�मिक रीतियों के अनà¥�सार सà¥�गंधित किया जाता है। इस दौरान पूरे विधि-विधान और à¤à¤µà¥�य तरीके से 'दारà¥�' (लकड़ी) को मंदिर में लाया जाता है।
इस दौरान विशà¥�वकरà¥�मा (लकड़ी के शिलà¥�पी) 21 दिन और रात के लिà¤� मंदिर में पà¥�रवेश करते हैं और नितांत गोपनीय ढंग से मूरà¥�तियों को अंतिम रूप देते हैं। इन नà¤� आदरà¥�श रूपों में से पà¥�रतà¥�येक मूरà¥�ति के नà¤� रूप में 'बà¥�रहà¥�मा' को पà¥�रवेश कराने के बाद उसे मंदिर में रखा जाता है। यह कारà¥�य à¤à¥€ पूरà¥�ण धारà¥�मिक विधि-विधान से किया जाता है।